सीबीआई VS ममता VS केंद्र : यह है 2019 के चुनावी बिसात की शुरुआत


सीबीआई बनाम ममता बनर्जी के इस केस में जहां सीबीआई बिना वारंट लिए पुलिस कमिश्नर से पूछताछ करने उनके ऑफिस पहुंची इससे सीबीआई और ममता सरकार के बीच जिस प्रकार से गहमागहमी हुई है उससे 2019 लोकसभा चुनाव की बिसात बिछ गई है ।
लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि पहली बार ऐसा हो रहा है जब पुलिस कमिश्नर के पूछताछ के मामले में खुद प्रदेश की मुख्यमंत्री धरने पर बैठ गईं और इससे भी बड़ी बात है की उनके साथ पुलिस आयुक्त भी धरने पर बैठे हुए हैं।
 सवाल उठता है क्या उनके पास कोर्ट जाने का मौका नहीं था? क्या इससे उनके कुछ पुराने राज खुल सकते थे? क्या सत्ता का मोह सत्यता से भी ज्यादा प्यारा है? या फिर यह एक केंद्र को दमनकारी सरकार साबित करने का एक कदम था।
अगर हम इसकी पूरी पृष्ठभूमि पर जाते हैं तो वहां से साफ पता चलता है कि शायद पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार ने सीबीआई को इतना सहयोग नहीं किया जितना की अपेक्षा की जा रही थी ।पूरे दस्तावेज भी उनको उपलब्ध नहीं कराए गए जबकि हलफनामे में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को यह आश्वासन दिया था की वह जांच में पूरा सहयोग करेंगे ।
क्योंकि वह पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा गठित चिटफंड घोटाले की जांच कर रही एसटीएफ को लीड कर रहे थे तो उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है।
सीबीआई ने  तीन बार पुलिस कमिश्नर को नोटिस भी भेजा था पर जवाब कुछ सकारात्मक नहीं रहा जिसके बाद सीबीआई कोई कदम उठाना पड़ा ।
पर सवाल यही उठता है कि क्या पुलिस कमिश्नर के यहां पूछताछ पर जाने से ममता की कुर्सी को खतरा है या फिर यह केंद्र सरकार की तरफ से सीबीआई द्वारा ममता सरकार डराने का एक तरीका है ?
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में सीबीआई ने कहा है की शारदा चिटफण्ड घोटाले में वह कोलकाता पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से पूछताछ करना चाहती है लेकिन आयुक्त साहब जवाब देने के मूड में नहीं दिख रहे।
सीबीआई ने यह भी आरोप लगाया है की वह इलेक्ट्रॉनिक सबूतों को नष्ट करने में लगे हुए हैं जिस कारण से सत्य सामने नहीं आ पायेगा।
 सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुँचने पर सुप्रीम कोर्ट ने तो यह जरूर कह दिया की यदि इसका अपने सबूत दिया और हमें जरा सा भी पता चला की सबूट नष्ट हो रहे हैं तो ऐसी कार्रवाई की जायेगी की पुलिस आयुक्त जिंदगी भर याद रखेंगे लेकिन अगर सबूत नष्ट ही हो जायेंगे तो कार्रवाई किस पर होगी।
 सीबीआई की स्वयत्तता पर फिर सवाल उठ रहे हैं की फिर से उसे तोते की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है और जब ये बात कांग्रेस के अध्यक्ष कहें तो बात और भी गंभीर हो जाती है पर तोते शब्द का इस्तेमाल तो सुप्रीम कोर्ट ने यूपीए की कार्रवाई पर कटाक्ष करते हुए 2013 में ही किया था ,तो क्या कांग्रेस अध्यक्ष के हिसाब से तब वह स्वायत्त थी और अब पिंजरे में बंद है?
 यहाँ एक और अंतर्द्वंद देखने को मिलता है जब बंगाल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कहते हैं की बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाइये ,राज्य की हालात खराब है और दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ममता दीदी के साथ होने का दावा कर रहे हैं। शायद हो सकता है ठीक से मीटिंग में बयानबाज़ी को लेकर चर्चा न हुई हो दोनों के बीच.
 लेकिन दिलचस्प बात यह भी है की यदि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के हेलीकॉप्टर उतरने से राज्य की व्यवस्था खराब हो सकती है, भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह की रैली से राज्य व्यवस्था खराब हो सकती है ,तो क्या सड़कों पर जाम लगाने से ट्रेनों को रोके जाने से और खुद मुख्यमंत्री के धरने पर बैठ जाने से राज्य की व्यवस्था में सुधार होता है?
लगातार जिस तरीके से तमाम दूसरी पार्टी के नेता और ममता दीदी के करीबी लगातार भाजपा का दामन थाम रहे हैं उससे पूरी उम्मीद की शारदा चिटफण्ड में आम जनता का मारा हुआ पैसा मिले न मिले पर कुछ नेताओं का पैसा सुरक्षित हो पार्टी फण्ड पहुँच जायेगा।
चाहे कुछ भी हो इस घटनाक्रम ने फिर से विपक्ष  और कांग्रेस को एक और मौका दे दिया है की वो सत्ता पक्ष को एक हिटलर सरकार साबित कर पाएं और पूरा विपक्ष एकजुट हो जाये।
वहीँ बीजेपी के पास पूरा मौका है की वो जनता को ये दिखा पाए की कांग्रेस और विपक्ष चोरों के साथ खड़ी है और सबसे साफ़ पार्टी पार्टी बीजेपी ही है और मुकुल घोष के आने के बाद उसमें और चमक भी आ गयी है।
लेकिन सवाल यही है क्या बंगाल की आम जनता का कुछ भला होता दिख रहा है इस घटनाक्रम से?
अगर धरना दिया जा रहा है ,ट्रेनें रोकी जा रही हैं तो क्या उस से विकास कार्य में तेज़ी आ रही है?प्रदेश की मुख्यमंत्री और पुलिस आयुक्त ही अगर धरने पर बैठ जायेंगे तो शासन तंत्र क्या जनता चलायेगी।
दूसरी ओर जनता के पैसों से जब हज़ारों लाखों का तेल खर्च करके हेलीकाप्टर से दूसरे प्रदेश की जनता को संबोधित करने के लिए उत्तर प्रदेश के मुखिया तैयार हैं तो क्या उसकी बजाय अपने प्रदेश की ढेर सारी समस्याओं के समाधान के लिए वो पैसे खर्च नहीं हो सकते?
जो भी हो सीबीआई अपना काम बखूबी कर रही है पर क्या जनता ने अपना कार्य किया है?

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