केंद्रीय विद्यालय बोला मैं भी सांप्रदायिक हो गया??

देश की सर्वोच्च अदालत में जब केंद्रीय विद्यालय में दैनिक प्रार्थना को बंद करवाने के लिए जब एक पेटिशन आयी तो केंद्रीय विद्यालय भी सोचने लगा की मैंने तो बिना किसी भेदभाव के सबको पढ़ाया और प्रेम दिया पर अब मुझे भी एक धर्म से जोड़कर देखा जायेगा।


वहीँ जब ये पेटिशन सुप्रीम कोर्ट पहुंची तो जज साहब भी  सुप्रीम कोर्ट में लिखे श्लोक "सत्यमेव जयते" की ओर देखने लगे, जो की मुण्डको उपनिषद से लिया गया है फिर उन्होंने भी सोचा लगता है मैं भी कुछ दिन बाद सांप्रदायिक ही हो जाऊंगा।


ये खबर जब आयी तो वायुसेना के जवान भी अपनी वर्दी पर लगे बैच की ओर देखते हुए उस पर लिखे श्लोक "नभः स्पृशं दीप्तम् " पढ़ने लगे और उन्होंने बगल में बैठे  अपने कप्तान खान साहब की ओर नज़र दौड़ाई और सोचने लगे मेरा देश की सेवा करना , देश के लिए जान न्योछावर कर देना भी न जाने कब हिन्दू-मुस्लिम में तोला जाने लगेगा?


वहीँ जब केंद्रीय विद्यालय  के अंदर कक्षा में पढ़ रहे बच्चों को कबीर और रहीम द्वारा रचित दोहे पढ़ाये जा रहे थे जिसमे बार बार राम का नाम का नाम आ रहा है ,वो शिक्षक जो सालों से विद्यालय में पढ़ा रहे हैं वो भी सोचने लगे क्या मैं भी इनको सांप्रदायिक चीजें पढ़ा रहा हूँ, क्या रहीम- कबीर के दोहे पढ़ने और पढ़ाने से एक विशेष धर्म को बढ़ावा मिलेगा??  यही सोचते हुए वो अगला दोहा छात्रों को पढ़ाने लगे।।

गांधी जी का "रघुपतिराघव राजा राम पतित पवन सीता राम " भी जल्द ही सांप्रदायिक होने की उम्मीद है और शायद उसपर भी एक पेटिशन फाइल की जा सकती है ।
पर दारुल उलूम ने जब इस पेटीशन का सर्मथन किया उस वक्त क्या वो गंगा जामुनी तहजीब को ध्यान में नहीं रख पाए।।

वहीँ जब संस्कृत भाषा के पास ये बात पहुंची तो वो भी बोली मैं तो सबकी जननी हूँ मैंने तो भेदभाव नहीं किया मानव-मानव में न जाने कब मैं एक धर्म विशेष की भाषा हो गई।
जीवन की सच्चाई और जीवन पद्धति बताने वाली संस्कृत न जाने कब साम्प्रदायिक हो गयी ?

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