देश के जवान की आवाज
सेना के जवानों की हत्या की गई है और सेना का हर जवान अपने देश की सेवा का सपना लेकर ही आता है और उसके अपना सर्वस्व न्योछावर करने के बाद भी उसकी मृत्यु पर केवल यह कहकर राजनेता अपना पल्ला झाड़ लेते हैं कि हम इस घटना की कड़ी निंदा करते हैं और पाकिस्तान से तथा आतंकियों से बदला लेने की बात करते हैं ।
क्या हर बार जवान की मृत्यु पर केवल झूठे आश्वासन देकर अपनी सरकार चलायी जायेगी?
उस जवान महिला का कौन ध्यान रखेगा जिसने अपने पति को खो दिया, उस बच्चे का कौन ख़याल करेगा जिसने शायद अपने पिता को ठीक से देखा भी नहीं अभी तक?
केवल सरकारी नौकरी देकर और कुछ पैसों की घोषणा करके सब अपने आपको कर्तव्यपरायण समझने लगते हैं।
हो सकता है कुछ समय बाद जब इन आतंकियों को पकड़ लिया जायेगा तो इनके मानवाधिकार की बात करने के लिए भी कुछ लोग खड़े हो जायेंगे ,शायद रात 4 बजे तक कोर्ट भी खुल जाए पर फौजियों के हक़ की बात पर कोई कोर्ट नहीं खुलता, किसी बड़े पत्रकारों के हस्ताक्षर नहीं होते।।
और कहीं न कहीं तमाम मानवाधिकार की बात उठाकर security में छूट देकर सुरक्षा को कमजोर बनाया गया?
पर सवाल यही है कि हर बार केवल एक सैनिक का परिवार और सैनिक ही क्यों अनदेखियों का खामियाजा भुगतेगी?
शायद राजनेताओं या देशविरोधी लोगों को फ़र्क़ नहीं पड़ता, पर हमारे जवानों की जान न जाए इसके लिए सोचा जाना चाहिए, गंभीर रूप से।।
हमारे पास भी लिखने, रोने, बिलखने और श्रधांजलि देने के अलावा कुछ नहीं होता है।
मैं खुद अपने आप को बंधा हुआ पाता हूँ।
मुझे क्रोध आता है उन सारी नाकामियों पर जिनके चलते हिंदुस्तान के न जाने कितने घरों की चौखट के दिये बुझ जाते हैं और न जाने कितने बच्चे अपने पिता के प्रेम से महरूम हो जाते हैं।।
क्या हर बार जवान की मृत्यु पर केवल झूठे आश्वासन देकर अपनी सरकार चलायी जायेगी?
उस जवान महिला का कौन ध्यान रखेगा जिसने अपने पति को खो दिया, उस बच्चे का कौन ख़याल करेगा जिसने शायद अपने पिता को ठीक से देखा भी नहीं अभी तक?
केवल सरकारी नौकरी देकर और कुछ पैसों की घोषणा करके सब अपने आपको कर्तव्यपरायण समझने लगते हैं।
हो सकता है कुछ समय बाद जब इन आतंकियों को पकड़ लिया जायेगा तो इनके मानवाधिकार की बात करने के लिए भी कुछ लोग खड़े हो जायेंगे ,शायद रात 4 बजे तक कोर्ट भी खुल जाए पर फौजियों के हक़ की बात पर कोई कोर्ट नहीं खुलता, किसी बड़े पत्रकारों के हस्ताक्षर नहीं होते।।
और कहीं न कहीं तमाम मानवाधिकार की बात उठाकर security में छूट देकर सुरक्षा को कमजोर बनाया गया?
पर सवाल यही है कि हर बार केवल एक सैनिक का परिवार और सैनिक ही क्यों अनदेखियों का खामियाजा भुगतेगी?
शायद राजनेताओं या देशविरोधी लोगों को फ़र्क़ नहीं पड़ता, पर हमारे जवानों की जान न जाए इसके लिए सोचा जाना चाहिए, गंभीर रूप से।।
हमारे पास भी लिखने, रोने, बिलखने और श्रधांजलि देने के अलावा कुछ नहीं होता है।
मैं खुद अपने आप को बंधा हुआ पाता हूँ।
मुझे क्रोध आता है उन सारी नाकामियों पर जिनके चलते हिंदुस्तान के न जाने कितने घरों की चौखट के दिये बुझ जाते हैं और न जाने कितने बच्चे अपने पिता के प्रेम से महरूम हो जाते हैं।।
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