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🔱 धर्म की कट्टरता की बेड़ियों को तोड़तीं नुसरत जहाँ ☪️

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नुसरत जहाँ इस बार के सांसदों में सबसे प्रचलित सांसदों में से एक हैं। उनके सांसद बनने के बाद उनका एक हिन्दू बिज़नसमैन निखिल जैन से तुर्की में शादी करना ,उसके बाद .संसद में शपथ लेते वक्त वंदे मातरम बोलना ,हिन्दू परंपरा के अनुसार सिन्दूर लगाकर आना , फिर लोक सभा स्पीकर ओम बिरला के पाँव छूना और अब जगन्नाथ रथयात्रा में शामिल होकर पूजा अर्चना करना उनको एक कट्टरवादी और रूढ़िवादी छवि से दूर ले जाता है और एक नए भारत के नए समाज के दर्शन करवाता है जो कट्टरवादी समाज की सोच को बदलने के लिए बहुत अच्छा है। नुसरत के इस अंदाज़ से जहाँ एक तरफ पूरा देश उनकी तारीफ कर रहा है वहीँ पर नुसरत का यह अंदाज शायद कट्टरपंथी मौलानाओं को रास नहीं आ रहा है और इसलिए वो नुसरत जहाँ की इस सेक्युलर विधान से नाराज़ नज़र आ रहे हैं और कई कट्टरपंथियों ने तो अपने धार्मिक स्थलों से तमाम फतवे निकालने शुरू कर दिए हैं ताकि उनकी दुकान चलती रहे और ध्यान रहे यह वही धर्म के ठेकेदार हैं जिनके धर्म को जीन्स पहनने से , बुर्का नहीं लगाने से ,मंदिर चले जाने से तुरंत खतरा महसूस होने लगता है और ये सब्ज़ियों की तरह फतवे जारी करने लगते हैं ।

कश्मीर की विवादित घाटी के विभिन्न विवाद और तर्क : एक विश्लेषण

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कश्मीर समस्या की जब हम बात करते हैं तो हमें कई तरह के विचार व विवाद नजर आते हैं । जिनमें से कई विचारों और विवादों पर आज हम चर्चा करेंगे। पर सबसे पहले मैं आप सभी से यह विडियो देखने की अपील करता हूँ जो की एक आतंकवादी के पिता का है । 1 .पहला विचार या तर्क यह दिया जाता है कि पाकिस्तान की ओर से कश्मीर को एक विवादित मुद्दा बनाया गया है और पाकिस्तान वहां पर पूरी तरह से कश्मीरी अलगाववादियों को ऐसा ड्राइविंग फोर्स उपलब्ध कराता है जिससे कश्मीर की समस्या में और ज्यादा इजाफा होता है और काफी हद तक यह बात सही भी है। लेकिन महत्वपूर्ण सवाल यह है कि वह ऐसा क्या DRIVING FORCE है जो पाकिस्तान को मदद करता है कश्मीरियों को आतंक की तरफ झुकने के लिए? क्या वो DRIVING FORCE किसी धार्मिक किताब से मिलता है? लेकिन ऐसी क्या चीज है जो उन अलगाववादियों या भारतीय परिपेक्ष में आतंकवादियों को ड्राइविंग फोर्स देती है। क्या वह एक ऐसी धार्मिक किताब में कुछ पन्ने हैं जो कि उसमें घी का काम करते हैं और उस कारण से वहां पर अस्थिरता फैलाना आसान होता है। और हम इस धार्मिक परेशानी का वैश्विक परिदृश्

देश के जवान की आवाज

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सेना के जवानों की हत्या की गई है और सेना का हर जवान अपने देश की सेवा का सपना लेकर ही आता है और उसके अपना सर्वस्व न्योछावर करने के बाद भी उसकी मृत्यु पर केवल यह कहकर राजनेता अपना पल्ला झाड़ लेते हैं कि हम इस घटना की कड़ी निंदा करते हैं और पाकिस्तान से तथा आतंकियों से बदला लेने की बात करते हैं । क्या हर बार जवान की मृत्यु पर केवल झूठे आश्वासन देकर अपनी सरकार चलायी जायेगी? उस जवान महिला का कौन ध्यान रखेगा जिसने अपने पति को खो दिया, उस बच्चे का कौन ख़याल करेगा जिसने शायद अपने पिता को ठीक से देखा भी नहीं अभी तक? केवल सरकारी नौकरी देकर और कुछ पैसों की घोषणा करके सब अपने आपको कर्तव्यपरायण समझने लगते हैं। हो सकता है कुछ समय बाद जब इन आतंकियों को पकड़ लिया जायेगा तो इनके मानवाधिकार की बात करने के लिए भी कुछ लोग खड़े हो जायेंगे ,शायद रात 4 बजे तक कोर्ट भी खुल जाए पर फौजियों के हक़ की बात पर कोई कोर्ट नहीं खुलता, किसी बड़े पत्रकारों के हस्ताक्षर नहीं होते।। और कहीं न कहीं तमाम मानवाधिकार की बात उठाकर security में छूट देकर सुरक्षा को कमजोर बनाया गया? पर सवाल यही है कि हर बार केवल एक सैनिक

केंद्रीय विद्यालय बोला मैं भी सांप्रदायिक हो गया??

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देश की सर्वोच्च अदालत में जब केंद्रीय विद्यालय में दैनिक प्रार्थना को बंद करवाने के लिए जब एक पेटिशन आयी तो केंद्रीय विद्यालय भी सोचने लगा की मैंने तो बिना किसी भेदभाव के सबको पढ़ाया और प्रेम दिया पर अब मुझे भी एक धर्म से जोड़कर देखा जायेगा। वहीँ जब ये पेटिशन सुप्रीम कोर्ट पहुंची तो जज साहब भी  सुप्रीम कोर्ट में लिखे श्लोक "सत्यमेव जयते" की ओर देखने लगे, जो की मुण्डको उपनिषद से लिया गया है फिर उन्होंने भी सोचा लगता है मैं भी कुछ दिन बाद सांप्रदायिक ही हो जाऊंगा। ये खबर जब आयी तो वायुसेना के जवान भी अपनी वर्दी पर लगे बैच की ओर देखते हुए उस पर लिखे श्लोक "नभः स्पृशं दीप्तम् " पढ़ने लगे और उन्होंने बगल में बैठे  अपने कप्तान खान साहब की ओर नज़र दौड़ाई और सोचने लगे मेरा देश की सेवा करना , देश के लिए जान न्योछावर कर देना भी न जाने कब हिन्दू-मुस्लिम में तोला जाने लगेगा? वहीँ जब केंद्रीय विद्यालय  के अंदर कक्षा में पढ़ रहे बच्चों को कबीर और रहीम द्वारा रचित दोहे पढ़ाये जा रहे थे जिसमे बार बार राम का नाम का नाम आ रहा है ,वो शिक्षक जो सालों से वि

सीबीआई VS ममता VS केंद्र : यह है 2019 के चुनावी बिसात की शुरुआत

सीबीआई बनाम ममता बनर्जी के इस केस में जहां सीबीआई बिना वारंट लिए पुलिस कमिश्नर से पूछताछ करने उनके ऑफिस पहुंची इससे सीबीआई और ममता सरकार के बीच जिस प्रकार से गहमागहमी हुई है उससे 2019 लोकसभा चुनाव की बिसात बिछ गई है । लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि पहली बार ऐसा हो रहा है जब पुलिस कमिश्नर के पूछताछ के मामले में खुद प्रदेश की मुख्यमंत्री धरने पर बैठ गईं और इससे भी बड़ी बात है की उनके साथ पुलिस आयुक्त भी धरने पर बैठे हुए हैं।  सवाल उठता है क्या उनके पास कोर्ट जाने का मौका नहीं था? क्या इससे उनके कुछ पुराने राज खुल सकते थे? क्या सत्ता का मोह सत्यता से भी ज्यादा प्यारा है? या फिर यह एक केंद्र को दमनकारी सरकार साबित करने का एक कदम था। अगर हम इसकी पूरी पृष्ठभूमि पर जाते हैं तो वहां से साफ पता चलता है कि शायद पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार ने सीबीआई को इतना सहयोग नहीं किया जितना की अपेक्षा की जा रही थी ।पूरे दस्तावेज भी उनको उपलब्ध नहीं कराए गए जबकि हलफनामे में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को यह आश्वासन दिया था की वह जांच में पूरा सहयोग करेंगे । क्योंकि वह पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा गठित चिटफंड घोट

सीट नंबर 58 कोच D3 का सफ़र

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अपनी जनरल बोगी काफी सालों से लगातार GENERAL बोगी में सफर करता रहा हूँ तो सीट के लिए एक मशक्कत की आदत सी हो गयी है, पर आज काफी सालों बाद जब RESERVATION वाली कोच में चढ़ा तो देखा सीट के लिए कोई मशक्कत नही थी, जिसकी सीट बुक थी वो उसकी सीट पर पहले से बैठे दुसरे व्यक्ति को उठाकर अपनी सीट पर बैठ रहा था मैं भी उसी डब्बे में बुक अपनी डी 3 बोगी की 58 नंबर पर बैठ गया था। पर आप यकीन नही करेंगे मुझे वो जनरल बोगी बहुत याद आ रही थी जिसमे एक बड़ी सी सीट में भले 5 की जगह में 7 लोग बैठकर जाते थे और 8वे व्यक्ति को भी एक लकड़ी के टुकड़े बराबर जगह में फिट कर देते थे और आपस में बात करते हुए जाते थे , अपनी व्यथा सुनाते हुए और, आपस में आजकल के राजनीतिक गलियारों की चर्चा करते हुए और बीच बीच में गोला बेचने वाला, नमकीन चाट वाला और चाय वाला आपके बीच में REFRESHMENT का जरिया बन जाता है। ।।शायद वो सुकून और वो लोगों से आपसी बातचीत का तरीका जिसमे धर्म और जाति का कोई बंधन बाधा नही बन सकता है और आप बिना किसी सरकारी तंत्र के डर के अपने किसी भी नेता और अपने प्रधानमंत्री की नीतियों का भी विरोध कर सकते

जवानों के साथ बर्बरता पर विपक्ष और सरकार मौन

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देश के जवानों के साथ आये दिन हमें हत्या और बर्बरता की खबर मिल रही है पर देश की जवानों की सुरक्षा की बात कर सत्ता में आए नेता अब मौन धारण कर चुके हैं, दुखद है की विपक्ष भी मुंह में दही जमा चुका है और देश के जवान के साथ अन्याय जारी है। एक 51 साल के सैनिक की पाकिस्तानी दानवों ने ऑंखें निकालीं, फिर करंट के झटके दिए गये और अंत में उनको गोलियों से छल्ली कर दिया गया , क्या ये सब तथ्य सुनकर एयर कंडीशन में सैनिकों के ही दम पर बैठने वाले नेताओं का दिल नहीं पसीजता । क्या सैनिक यूँ ही राजनीति की भेंट चढ़ते रहेंगे, क्या उनके परिवार इसी तरह आंसू बहाते रहेंगे, क्या देश के मंत्री केवल आश्वासन ही देते रहेंगे। न जाने देश के जवान कब सुखद दिन प्राप्त कर पाएंगे, क्योंकि हम केवल उनकी सफलता का श्रेय लेना चाहते हैं, परंतु उनके दुखद समय में कोई उनके आंसू पोछने वाला नही है ।